Share this
आस्था की परिक्रमा — होली परिक्रमा मेला का द्वितीय दिवस
( युगाधार समाचार )
सीतापुर – परिक्रमा के पहले पड़ाव “कोरोना ” मे रात्रि विश्राम के बाद रामादल आज भोर मे ही अपने अगले पड़ाव के लिए निकल पड़ा ,वैसे तो रोज की ही ये दिनचर्या है और रामादल प्रतिदिन् करीब 8 कोस का सफऱ तय करता है ,लेकिन आज तो परिक्रमा को कई महत्वपूर्ण स्थानों के दर्शन भी करने है ,साथ ही सूर्यास्त से पूर्व जिले की सीमा को पार कर हरदोई सीमा मे भी प्रवेश कर लेना है इसलिए और जल्दी है ,वैसे भी आज का पड़ाव गोमती के उस पार नदी के तलहाटी क्षेत्र मे होता है ,और वहा आसानी से जगह भी नही मिलती इस नाते सभी को जल्दी से जल्दी पहुंचने की जल्दी है ,
रामादल कोरोना मे सुबह सुबह एक बार फिर द्वारिकाधीश मंदिर मे दर्शन कर आगे की तरफ निकल पड़ा ,और कुछ ही दूर चलने पर् पड़ गया परिक्रमा समिति के सचिव महंत् संतोष दास खाकी का बनगढ आश्रम ,परिक्रमा मार्ग पर् सन्यासियो के ऐसे बहुत से आश्रम मिलेंगे ,माना जाता है मुगलो के आक्रमण के समय जमींदारो ,ताल्लुकेदारों और राजाओं ने भूमिदान कर ये आश्रम स्थापित कराये थे ताकि ये सनातन संस्कृति की रक्षा का कार्य कर सके ,इन आश्रमो मे गुरुकल भी संचालित होते थे और शस्त्र ,शास्त्र दोनो की शिक्षा का प्रबंध था ,आज भी ये आश्रम धर्मरक्षा मे बड़ा योगदान कर रहे है ,आश्रम मे कई वट वृक्ष बड़ा मनोरम प्राकृतिक वातावरण का एहसास कराने के साथ ही अध्यत्मिक चेतना का भी काम करते है ,परिक्रमा दल संत दर्शन के बाद आगे बढ़ता है और रामगढ़ मे मंदिरो का दर्शन कर ,सरैया मे ग्राम प्रधान रामू पाण्डेय का आतिथ्य स्वीकार कर परिक्रमा दल परिक्रमा समिति के अध्यक्ष और डंका वाले बाबा पहला आश्रम पहुँचता है ,ये स्थल जितना धार्मिक है उतना ही अधिक रामणिक भी ,आश्रम के अंदर यहा हुए प्रमुख संतो की मूर्तिया मानो बोलती हुई प्रतीत होती है ,आश्रम के अंदर बने मंन्दिरो की विस्तृत श्रंखला की प्रदक्षिणा कर और साधु संतो की चरण पादुका का पूजन अर्चन कर परिक्रमा दल बकचेरवा इलाके के कैलाश आश्रम पहुँचता है ,अत्यंत प्राचीन इस स्थल का पिछले कुछ वर्षो मे आर एन सिंह बाबूजी के सक्रिय प्रयासों के रहते काफी विकास हुआ है ,गोमती तट पर् काफी ऊंचाई पर् बना शिव मंदिर अत्यंत दिव्य एवं आध्यत्मिक चेतना का प्रतीक है ,मान्यता है महर्षि दधीचि की इच्छा के अनुरूप जब सभी तीर्थो का यहा पड़ाव हुआ तब कैलाशवासी भोलेनाथ का पड़ाव यही पर हुआ था ,आप जब यहा दर्शनो के लिए आएंगे तो वही एहसास होगा ,साथ ही मंदिर के निकट बना देवी मंदिर भी अत्यंत दिव्य है तो मंदिर प्रांगड़ मे बना सरोवर और उसके मध्य मे स्थापित शिव प्रतिमा इस स्थल के महत्व को स्वय परिभाषित करती है ,इस प्रांगण मे 12 वर्षो का अखंड राम नाम संकीर्तन चल रहा है ,श्रद्धालु जिसमे आस्था की डुबकी लगाते है ,वही इसी जगह पर् खबीस बाबा का मंदिर है जिन्हे सिद्ध संत माना जाता है ,उनके इस स्थल पर् मदिरा चढ़ाये जाने की प्रथा है ,और सबसे खास बात यहा वानरो की बड़ी संख्या है ,जो मदिरा ही एक बूँद भी नीचे जमीन पर नही बहने देते और उसे उद्रस्थ कर् जाते है ,हलंकी यहा वानरो की बड़ी संख्या से बचकर रहना श्रद्धालुवो के लिए बड़ी चुनौती है ,इस स्थल का स्वाधीनता संग्राम से भी तालूक रहा है कहा जाता है नाना साहब एक लम्बे अंतराल तक यहा रहे थे ,इस स्थल को लेकर कई अन्य किवदंटिया भी है ,कुछ बरस पहले जब गोमती पर् पुल न बना था ,इस स्थल से लेकर गोमती के उस पार हरदोई तक परिक्रमा करने वालों का पड़ाव पड़ता था ,जिनको देर हो जाती थी वो गोमती सुबह् पार करते थे ,लेकिन अब सभी परिक्रमार्थी उसी दिन गोमती पार करके उस पार हरदोई के हरैया मे पड़ाव करते है ,परिक्रमा के सभी पड़ावो मे ये सबसे मुश्किल पड़ाव है ,नदी की तल्हाटी मे रात और जंगली जानवरो का भी खतरा मुश्किल भरा तो होता है लेकिन अंतत हर मुश्किल् अस्थाओ के आगे हार जाती है ,
आज की रात मे गोमा के किनारे ही होगा बोल कड़ा कड़ सीताराम और अब तीन दिनों तक हरदोई जनपद की सीमा मे ही रहेगा!