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आस्था की परिक्रमा 84 कोसीय परिक्रमा – तृतीय दिवस
( युगाधार समाचार )
सीतापुर -ब्रम्हमुहूर्त मे आदि गंगा मा गोमती के स्नान का सुख ही अविर्चनीय है ,बीती रात का तो पड़ाव ही गोमा के किनारे था,पूरी रात भगवत भजन मे कट गई ,हालंकी पुलिस की लापरवाही के रहते चोरी की घटनाये प्रकाश मे आती रही ,लेकिन भोर होते ही रामादल गोमती स्नान कर अपने अगले गँतव्य के लिए निकल पड़ा ,आज सूर्य देव भी कुछ अधिक प्रखर है और मार्ग भी बलुई क्षेत्र मे है ,नतीजन तपिश कही अधिक अनुभव हो रही है ,परिक्रमा आगे बढ़कर कल्याणमल के मोटेनाथ शिव मंदिर पहुँचती है ,कुछ लोग इसे कल्याणमूनी भी बोलते है ,मान्यता है यहा कनाद ऋषि ने तप किया था ,इसी से लगा भैन गांव है जो माता जी का सिद्ध स्थल है ,श्रद्धालु यहा पूजा अर्चना कर परसपुर मल्हनपुर होते हुए तथागत बुद्ध से जुड़ी धरती भटपुर पहुंचते है ,सभी मत मान्यताओं को खुद मे समाहित करती ये परिक्रमा समरसता की यात्रा भी है ,रामादल जरउवा गांव होते हुए भवानीपुर के मा कलिका मंदिर के पास से गुजरता है ,कुछ लोग यहा दर्शन करने जाते तो कुछ सीधे निकल जाते है ,लेकिन इस स्थल का भी अपने आप मे बड़ा महत्व है जो नैमिष क्षेत्र का प्रमुख स्थल था ,और गोमती की कटान के रहते कुछ साल पहले अब हरदोई जिले की सीमा मे आ गया ,अत्यंत रामनीक ये स्थल गोमती और अरन्य के विहंगम दृश्य का अवलोकन कराता है ,जहा से गोमती की कटान से प्रभावित हुई गोहिलारी ग्राम सभा है जो दिखती हरदोई जिले मे है लेकिन है सीतापुर जिले मे ,चारो तरफ नदी से घिरी होने के कारण इसे त्रेता युग की लंका की उपमा दी जाती है ,टीले पर बने मा कलिका देवी मंदिर के वर्तमान स्वरुप को बाजीराव पेशवा द्वारा बनवाया बताया जाता है ,उन्होने निकट ही बाजीराव पुरवा भी बसाया ,इस स्थल की प्राचीनता यहा सतयुग मे बना भगवान नाश केतु शिव मंदिर है ,इसे केतु की तपस्थली कहा जाता है जीर्ण शीर्ण सीढ़ी आज भी मौजूद है ,यहा पर सौ वर्ष से अधिक की आयु पूर्ण कर चुके सुंदरलाल संत भी निवास करते है जिन्हे लोग फलाहारी बाबा के नाम से जानते है, परिक्रमा आगे बढ़ती है और दोबरा गांव मे कटोरा बाबा के नाम से सिद्ध स्थल होते हुए आज की यात्रा के प्रमुख केंद्र हत्याहरण तीर्थ पहुँचती है,इस स्थल के बारे मे कहा जाता है कि भगवान राम को जब रावण वध के बाद ब्रम्ह हत्या लगी तब गुरु वशिष्ठ के निर्देश पर उन्होंने यहा स्नान किया था तब उस पाप से मुक्ति मिली थी ,आज भी लोग गोहत्या के पाप से उबरने के लिए यहा आकर स्नान करते है ,परिक्रमा के अलावा भाद्र पक्ष के रविवार मे हुए स्नान का बड़ा महत्व है,मान्यता है इस तीर्थ की नीव स्वय महादेव ने डाली थी ,शिव पुराण के अनुसार एक बार भोलेनाथ मा पार्वती के साथ नैमिष अरन्य मे विचरण कर रहे थे ,घूमते घुमते वो इस स्थल पर आये और यही तप करने लगे ,तप के दौरान माता पार्वती को प्यास लगी तब भोलेनाथ ने वहा जल न होने पर भगवान सूर्य से जल के लिए कहा ,उन्होंने एक कमंडल जल दिया ,जल ग्रहण करने के बाद शेष जल भूमि पर गिर गया जिससे वहा एक कुंड का निर्माण हुआ ,शिव ने इस स्थल् का नाम “प्रभास्कर क्षेत्र ” रखा ,ये कथा सतयुग की है ,काल बीता द्वापर मे जब भगवान ब्रम्हा पर अपनी पुत्री पर कूदृष्टि डालने का पाप लगा तो उन्होंने भी यहा आकर स्नान कर उसका उन्मोचन किया ,तब ये ब्रम्ह क्षेत्र कहलाया ,भगवान राम के जब स्नान कर यहा ब्रम्ह हत्या का पाप मिटाया तब से ये स्थल हत्याहरण बोला जाने लगा ,कहा जाता है इस स्थल् आप स्नान कर राम का एक बार नाम लेने से हजार नामो का लाभ मिलता है,मान्यता है कि पांडव भी अपने कुल का नाश करने के बाद यहा स्नान करने आये थे ,इस स्थल पर एक विशाल पाताल तोड़ कुंड है ,जिसके चारो तरफ मंदिर बने हुए है ,इस तीर्थ पर वर्तमान घाटों का निर्माण 28 माई 1939 को जनक किशोरी देवी पत्नी ठाकुर शंकर सिंह ने कराया था,जगन्नाथ सिंह काकुपुर के जमींदार थे ,इसका उद्घघाटन उस समय के डिप्टी कमीशनर राय बहादुर शंभू नाथ ने किया था ,ये स्थल् अत्यंत मनोरम होने के साथ ही बड़े धार्मिक महत्व का भी है ,संसार् ने पाप उन्मोचन का ऐसा कोई दूसरा तीर्थ शास्त्रों मे नही मिलता ,
परिक्रमा को आज यहा काफी समय लग गया ,लोगो ने स्नान भी किया और मंदिरो मे पूजन् भी ,इसी मे शाम हो गई है और हम पहुंच चले है आज के अपने पड़ाव नगवा के लिए इस पूरे क्षेत्र को नागराज का क्षेत्र माना जाता है ,जिसकी राजधानी नगवा जयराम थी जहा परिक्रमा अपने अंतिम चरन् मे पहुंचेगी तब वहा की विस्तृत चर्चा करूंगा,
पहले परिक्रमा का पड़ाव नगवा मे ही होता था लेकिन बड़ी आबादी नहर के उस पार कोठावा मे बस गई तो पड़ाव का विस्तार भी नगवा से लेकर कोठवा तक हो गया और पड़ाव का नाम भी नगवा कोठावा हो गया ,ये पूरी परिक्रमा का मिश्रीख से पूर्व एकमात्र क्षेत्र है जिसका पड़ाव कस्बाई इलाके मे भी है ,
आज की रात यही करेंगे पड़ाव और कल चलेंगे गिरधरपुर उमरारी के अगले सफऱ पर तब तक बोल कड़ा कड़ सीताराम