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मध निषेध पर विशेष
(नशा एक सामाजिक अपराध है )
धूम्रपान, तम्बाकू या मदिरा जैसे नशीली पदार्थों के सेवन से बडी मात्रा में धन, सेहत तथा संबंधों का नाश होता है।
इसलिए अधिकतर देशों में मद्य को निषेध घोषित किया गया है।नशा एक सामाजिक बुराई है जिसमें क्षणिक आनंद प्राप्त होता है लेकिन उसकी हानियां सैकड़ों गुना अधिक हैं। नशा यह शरीर तथा मन को धीरे धीरे खोखला करता चला जाता भारत जैसे विशाल देश में मुख्यतः तीन वर्गों के लोग रहते हैं जिसमे अमीर, मध्यम व गरीब लोग शामिल हैं। लेकिन नशा सेवन में तीनों वर्गों के लोगों की भूमिका पाई जाती है।
लेकिन गरीबी को झेलने वाले वर्गो में यह दुर्गुण सामान्य से थोडा ज्यादा पाया जाता हैं।
बहुत से लोग नशे के पक्ष में तथा कुछ लोग नशे के विपक्ष में तर्क देते है। नशे के पक्ष वाले लोगों का मानना है कि नशा करना यह उनका मौलिक अधिकार है तथा वे अपने धन का उपयोग कर किन्ही भी चीजों को खाने पीने के लिए स्वतंत्र हैं।दूसरी ओर उनका यह भी तर्क होता है कि नशे के व्यापार के माध्यम से देश को आर्थिक लाभ होता है।
अगर यह बंद कर दिया जाए तो देश को बहुत बडी हानि हो सकती है नशे के विरोध में लोगों का तर्क है कि मद्यपान के कारण इंसान की नैतिकता का नाश हो जाता है। नशे में रहे व्यक्ति को वास्तकिता का ज्ञान नहीं रहता इसलिए वह समाज के ऊपर एक खतरा साबित हो सकता है नशा क्या है ऐसे पदार्थ जिनके सेवन करने से मन पूरी तरह से विकृत होने लगता है तथा शारीरिक व पर्यावरणीय हानि होती है।
जिसे मादक पदार्थ कहा जाता है। मादक द्रव्य को शरीर के लिए अनुकूल नही बताया गया है लेकिन क्षणिक सुख के लिए लोग इनका सेवन कर अपने शरीर तथा अपने परिवार व समाज की हानि करते हैं। मादक पदार्थ सीधे मस्तिष्क पर आधात करते हैं।
और इनसे सोचने विचारने की शक्ति क्षीण होती चली जाती है। इसके सेवन के बाद इंसान को वर्तमान की भनक नहीं रहती है। नशे में ही व्यभिचार, उन्माद जैसे जघन्य अपराध होते हुए पाये जाते हैं । हर साल अन्तर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ विरोधी दिवस 26 जून को पूरी दुनिया में (इंटरनेशनल डे अगेस्ट ड्रग्स अब्यूज इंट इलिसिट ट्रैफिकिंग) के रुप मे मानाया जाता है।
यूनाइटेड नेशंस की सहायता से यह दिन मानने की शुरुआत 1987 में हुई। लोगो को नशे से आजादी दिलाना और स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करना ही इस दिवस का मात्र उददेश्य है ।
भारत सरकार ने मद्यनिषेध के लिए बहुए ही कठोर कानून व्यवस्था को स्थापित किया है। जिसमें संविधान के चौथे भी की 47वी धारा के अनुसार जनसमूह के बीच मादक पदार्थों का सेवन या बेचने पर कठोर दंड का प्रावधान है। धारा 21 द्वारा भारतीय संविधान में राज्य सरकारों को खुली छूट दी गयी है कि वे सार्वजनिक सम्मति से नशाबंदी परनियम बना सकते है । नशे की आदत छोडो. खुशी जीवन से नाता जोडो न काम का न काज का, नशा है दुश्मन जान का ।
(आभार )
श्रीमती नीतू वर्मा
जिला मद्यनिषेध एवं समाजोत्थान अधिकारी, लखनऊ